पिछले दिनों भारतीय सिनेमा ने बहुत कुछ खोया है। पहिले दारासिंह फिर भारतीय सिनेमा जगत के पहिले सुपर स्टार राजेश खन्ना और अब श्रेष्ठतम चरित्र अभिनेता ए.के. हंगल नहीं रहें। उन्हें 25 अगस्त की देर रात्रि को मुम्बई के सान्ताकू्रज के आशा पारिख हास्पिटल में भर्र्ती कराया गया था। पिछले दिनों गिर जाने से उनकी कूल्हें की हडडी टूट गई थी जिसके ऑपरेशन के दौरान कुछ अन्य वृद्धावस्था जन्य बीमारियों का पता चला जिनसे वे पिछले कुछ समयं से जूझ रहे थे तथा अभिनय से दूर थे। पिछले दिनों में वे एक निजी चेनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल मधुबाला में दिखे थे जिसमें उन्होंने एक नवजात लडकी का ‘मधुबाला’ नामकरण किया था।
पं. हरि किशन हंगल जो सामान्यतः ए.के.हंगल के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने अपना फिल्मी सफर 50 वर्ष की आयु से प्रारंभ किया था। उनकी पहिली अभीनीत फिल्म 1966 में सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक वासु भटटाचार्य द्वरा निर्देशित फिल्म फिल्म तीसरीकसम थी। उसके बाद तो उन्होंने कभी भी पीछे मुडकर नहीं देखा। उन्होंने 225 फिल्मों में चरित्र अभिनेता का किरदार निभाया। वे हमेशा अपने को उस किरदार में समाहित कर लेते थे। उनके अभिनय को देख कर लगता ही नहीं था कि, वे औेर किरदार कहीं अलग है। यही उनकी खूबी थी जो उन्हें दूसरों से अलग रखती थी। कौन भूल सकता है शोले का वो किरदार कि जिसे आँखों से नहीं दिखता लेकिन वों अपने बेटे को उसके भविष्य की खतिर शहर भेज देता है ओर गांव की एकता के लिये जान दे देता है, या फिर बाबर्ची, आँधी, आपकी कसम ,अमर दीप, थोडी सी बेवफाई आदि आदि अनेक बेहतरीन फिल्मों में उनके द्वारा किया गया श्रेष्ठ अभिनय ।
हंगल, ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वे मूल रुप से पेशावर के रहने वाले थे औेर भारत पाक विभाजन के बाद वे मुम्बई आ गयें और स्व. बलराज साहनी औेर कैफी आजमी के सम्पर्क में आये औेर सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘‘ ईप्टा’’ से जुड गयें।
1 फरवरी 1917 को सियालकोट ;(वर्तमान पाकिस्तान) में जन्में हंगल ने 95 बसंत देखें। वे विगत कई वर्षों से बहुत आर्थिक विपन्नता से झूझ रहे थे। उनके पुत्र जो केमरामेन थे 75 वर्ष के है उनकी उम्र के चलते वे भी विगत कइ्र वर्षों से नियमित रोजगार में नहीं हैं। फिल्म जगत ने उन्हें कुछ आर्थिक मदद दी। हंगल के साथ कई श्रे”ठ फिल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री जया बच्चन,रमेश सिप्पी, सलमानखान आदि प्रमुख है। पूर्व में महाराष्ट्र सरकार ने भी उन्हें पचास हजार का चैक दिया था। कुछ प्रमुख सिने संस्थाओं ने भी हंगल को आर्थिक मदद दी।
हंगल ने 2005 में आखिरी बार अमोल पालेकर की फिल्म पहेली में आखिरी बार केमरे का सामना किया। यद्यपि उन्हें फिल्मों में अभिनय के तो प्रस्ताव आते रहे लेकिन वे, अपने स्वास्थ्य के कारण काम करने में असमर्थ थे।
हंगल को भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिये वर्ष 2006 में पद्म भूषण प्रदान किया गया।
उनके जीवन की अंतिम समय की आर्थिक त्रासदी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि, क्या ऐसे श्रेष्ठ कलाकारों की सहायता के लिये सरकार की तरफ से कोई योजना नहीं बन सकती?
Uma Shankar Mehta
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