आप किसी भी समाचार चेनल को ट्यून करें आपको झटका,निशाना,पलटवार, मुसीबत या राहत शब्द सुनने को जरुर मिलेगें। गोया इन शब्दों के अलावा कोई समाचार ही नहीं बनता।
मैं गुजरात दंगों के बाद से इससे संबंधित समाचारों पर नजर रखे हूँ। विगत वर्षों में आये दंगों से संबधित समाचारों में न जाने कितनी बार मोदी को झटके मिले, न जाने कितनी बार मोदी को राहत और न जाने कितनी बार मोदी को क्लीन चिट। आम आदमी आज तक समझ नहीं पाया कि, दो दिन पहिले जिस मोदी को क्लीन चिट मिली उसे अब किस बात का झटका मिला। इसी प्रकार विगत दिनों केन्द्र सरकार को‘‘ बडा झटका’’ मिला बात सिर्फ इतनी सी थी कि, आंध्र प्रदेश हायकोर्ट ने उस निर्णय पर रोक लगा दी थी जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित कोटे में से मुस्लिम आरक्षण देने का एलान कर दिया था। केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की यह एक निर्धारित प्रक्रिया है कि, पीडित पक्ष हमेशा निचली अदालत के निर्णय पर स्थगन माँगता है। तदनुसार ही केन्द्र सरकार ने मूल याचिका के साथ साथ स्थगन आवेदन माँगा। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्थगन नहीं दिया । तुरंत इलेक्ट्रिक मीडिया ने खबर दी कि‘‘ केन्द्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय का झटका’’। लोगों में इसकेा लेकर यह भ्रातिं पैदा हुई कि, सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम आरक्षण को रद्ध कर दिया। जबकि वास्तविकता थी कि, न्यायालय उसे पूरे दस्तावेजों के आधार पर निर्णय देना चाहता है।
इसी प्रकार कोई नेता या टीम अन्ना के कोई सदस्य का बयान आता है कि, —- मंत्री भ्रष्ट, तो तुरंत यह खबर आती है कि, — का — पर निशाना। अब वो निशाना पिस्तौल का होता है या तीर का कुछ समझ में नहीं आता। आज प्रेस कॉन्फ्रेंस करना इतना सस्ता हो गया है कि, हर कोई इस आयोजित कर अपने आप को रा”ट्रीय स्तर पर दिखा देता हैे। चाहे वो मुद्धा राष्ट्रीय स्तर का हो या न हो। इस मामले में बाबा रामदेव औेर अरविन्द केजरीवाल सिद्धहस्त हैं। शायद ही कोई दिन जाता हों जिसमें ये देानों टी.वी. पर प्रकट न होते हों। इन दोनों का ही काम कांग्रेस को कोसना मात्र रह गया है। मूल आन्दोलन ओैर उसकी गतिविधिया गौणं हो गई है। इन्हीं की प्रेस रिपोटिंग से — पर निशाना शब्द बहुप्रचलित हो गया है। इसी से सबधित एक शब्द ‘पलटवार’ बहुतायत से उपयोग में आ रहा है। जब एसे किसी आरोपों को खारिज किया जाता है या सामने वाले पर प्रत्यारोप लगाये जाते है तो —- का — पर पलटवार शब्द सुना जाता है।
‘‘मुसीबत में या मुश्किल में ’’ शब्द भी आजकल बहुत सुनने को मिलते है। किसी के आरोपो के बाद सामने वाला मुश्किल में आ जाता है, गोया आरोप लगाने वाला कोई दूध का धुला हो। जो स्वॅय शंकित के रुप में चिन्हित हो वो भी केमरों के सामने सामने वाले पर आरोप लगाने की हिमाकत कर लेता है चाहे सामने वाले का कद कितना ही बडा क्यों न हो। केजरी वाल इस कला में पारंगत है। मंच पर बाबा रामदेव से घुडकी खानें क बाद भी वो अपनी आदत से बाज नहीं आये ओर राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणव दादा पर ही आरोप मढ दिये। चाहे बाद में अन्ना जी को उसे सम्हालना पडा औेर कहना पडा कि, वे अच्छे औेर साफ सुथरे नेता है। अन्ना के इस बयान से प्रणव दा को ‘‘राहत’’ मिली।
अपनी टी.आर.पी. बढाने के चक्कर में ये चेनल क्यों देश की जनता के सामने सच न परोस कर थ्रिल परोस रहे है। इनकी अधिकांश बहसें भी उद्धे’य विहीन होती हैं। मसलन प्रणव दादा की वित्त मंत्री की सीट रिक्त होने की स्तिथि में उनका स्थान कौन लेगा? या अगले वन डे या किसी सीरिज के पहिले यह बहस कि, टीम में कौन कौन से खिलाडी का चयन किया जायेगा या कोन खिलाडी होना ही चाहिये गोया चेनल एक्सपर्ट की राय चयनकर्ताओं के लिये हिंट हो औेर उसी के अनुरुप टीम चुनने के लिये चयन कर्ता बाध्य हों। क्या ये मुद्धे इनके अधिकार क्षेत्र है? एक सर्वश्रेष्ठ चेनल के प्रश्नकर्ता तो सामने वाले व्यक्तित्व से ऐसे प्रश्न करते है जैसे वो उस प्रश्नकर्ता या चेनल के जर खरीद गुलाम हों।
न जाने क्यों किसी सामान्य समाचार को इतना बढा चढाकर प्रसतुत किया जाता है। समाचार संकलन कर्ता का कार्य केवल समाचार को वास्तविक तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत करना है न कि, उसमें स्वॅय की ओर से मिर्च मसाला लगाकर। इन सब के बीच समाचार की गंभीरता कहीं पीछे छूट गई है। औेर समाचार कुछ ओैर ही निकल कर आता है। इसीलिये आज भी आकाशवाणी के समाचार संस्करणों की लेाकप्रियता औेर प्रति”ठा जस की तस है। उसमें कहीं कोई बनावट या लाग लपेट नहीं है।
बहरहाल टी.आर.पी. के इस दौर में जहाँ गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो, झटका, पलटवार, निशाना शब्द उपयोगी बने रहेगें।
Uma Shankar Mehta
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