यहाँ गाँधी चरखा और तिरंगा रोजाना पूजे जाते है।
गाँधी के बारे में कहा जाता है कि, गाँधी आज भी प्रासंगिक है। गाँधी एक इंसान नहीं गाँधी एक भावना है,कामना है, मनोकामना हैे। गाँधी चरखे की आत्मा है,गाँधी स्वतत्रता की परिकल्पना है, गाँधी रि’तों कर प्रगाढता है,गाँधी सादगी का प्रतीक है, गाँधी आन्दोलन है, गाँधी जन जाग्रति है, गाँधी श्रें”ठ मानव मूल्यों का प्रतिबिंब है। इसीलिये गाँधी आज भी प्रासंगिक है। गाँधी का आज भी कई जगह पूजा जाता है।
‘‘ हे धर्मे’ा, दुनियाॅ में ‘ाांति बनाये रखना, हिंसा,झूठ औेर बेईमानी की जरुरत मानव समुदाय और समाज को नहीं पडे। धर्मे’ा, हमें छाया देते रहना हमारे बाल बच्चोंें को भी। खेती का मौेसम गुजर रहा है। दूसरा आने वाला है हम खेती के समय हल कुदाल चलाते हैं। संभव है हमसे,हमारे लोगों से कुछ जीव जंतुओं की हत्या भी हो जाती होगी, हमें माफ करना। धर्मे’ा,क्या करें घर परिवार का पेट पालने के लिये अनाज जरुरी है,न? समाज- कुटुम्ब का स्वागत नहीं कर पाये, उन्हें साल में एक दो बार भी अपने यहाॅ नहीं बुला पाये तो अपने में मगन रहने वाले जीवन का क्या मतलब होगा? इन्हीं जरुरतों कीपूर्ति के लिये हम खेती करते है। खेती के दौेरान होने वाले अनजाने अपराधें के लिये हम आपसे क्षमा माॅग रहे है। धर्मे’ा, हमें कुछ नहीं चाहिये। बस बरखा, बुनी समय पर देना। हित कुटुंब- समाज से रि’ता ठीक बना रहे सबको छाया मिलती रहे औेर कुछ नहीं।
झारखड में गुमला जिले के रोगो गाॅव और आसपास के कुछ गाॅवों में गाँधी चरखें और तिरगें के सामने यह टाना भगतों आदिवासी समुदाय की नियमित आराधना है। जो यद्यपि आदिवासी भा”ाा कूड्ग का हिन्दी रुपान्तरण है। इस टाना समुदाय के लिये महात्मा गाँधी आदर्’ावाद के प्रतीक भर नहीं है। ये लोग अपनी सामुदायिकता को गाँधी के बताये तौेर तरीकों से गढकर आगे बढ रहे है। इस समुदाय के विचार और जीवन ‘ोैली गाँधीवादी है।
गाँधी टोपी पहिने पुरु”ा औेर रंगीन पाडे वाली साडी पहिने महिलायें सस्वर औेर सामूहिक प्रार्थना करते है। पुरु”ा दीप जलाकर चरखेवाले तिरंगें के सामने अपने धर्मे’ा यानि ई’वर की अराधना करते है। टाना भगत समुदाय सत्य अहिंसा केा अपने जीवन का मूल मंत्र मानता है। माॅस मदिरा से दूर रहता है। दे’ा प्रेम की भावना से ओतप्रोत येे टाना समुदाय के लोग साल में तीन बार एक अनूठा आयोजन करते है जिसे झंडा बदलना कहा जाता है। यानि हरेक घर पर तिरंगा बदला जाता हैं ये घरों के साथ साथ अराधना स्थल पर भी बदला जाता है।
तिरंगा बदलनें का पहला आयोजन आ”ााढ मास में होता हेंे। जिस दिन तिरंगा बदला जाता हैे उस दिन आसपास के टाना समुदाय के लोग इकठठा होते है। सामुहिक उपवास होता है फिर सामूहिक अराधना, तिरंगा बदलकर भजन कीर्तन औेर उसके बाद सामूहिक भोज होता है। दूसरे झंडें को दीपावली के 15 दिन पहिले इसी पद्धति से बदला जाता है तथा तीसरा झंडा होलिका दहन के पहिले बदला जाता है। इनमें एक ओर वि’ो”ाता देखनें को मिलती हैे जब स्त्री औेर पुरु”ा इस दिन सात घागों वाला जनेउ बदलते हैं। जिसके पीछे इनकी अवधारणा यह है कि, वह सतयुग कभी तेा आयेगा जब समाज में सत्य का ही बोलबाला होगा।
गाँधी जयंती पर इसी समुदाय के गाॅव खक्सीटोला मे एक वि’ो”ा समारोह होता है जहाॅ टाना समुदाय के 74 ‘ाहीदों का स्मारक हैं। मजे की बात तो यह है कि, टाना समुदाय के पुरोधा जतरा टाना भगत औेर गाँधी जी में मुलाकात तक नहीं हुई थी। गाँधी जी को यह जानकारी उनके झारखंड प्रवास के दोैरान मिली कि, ये समुदाय पहिले से ही अपने ढंग से सत्य और अहिंसा की लडाई लड रहा है। ये लोग अंग्रेजों को लगान नहीं दे रहे है तथा अ्रग्रजों के दबाव के बाबजूद अपने ेखेतों में कपास उगाकर अपने कपडे खुद बुन रहे है। गाँधी के कहने पर इन्होने सदा झंडे के स्थान पर चरखे वाला तिरंगा अपनाया औेर गाँधीमय हो गये तब से यह सिलसिला अनवरत है।
44 हजार की जनसंख्या वाला यह समुदाय अीाी भी अ’िाक्षित है। 1982 में यहाॅ एक निजी कम्पनी ने एक आई.आई.टी. की ‘ाुरुआत की थी लेकिन ये अगले कुछ वर्”ाों में यह बंद हो गई। टाना आदिवासियों के बच्चों के लिये आवासीय विद्यालय की परियोजना प्रारंभ हुई लेकिन बाद में ये सामान्य आदिवासी विद्यालय में परिवर्तित हो गये। काॅग्रेस के इस परम्परागत वोट बैंक को रिझाने के लिये खस्की टोली गाॅव में ‘ाहीद स्मारकों के नाम से दो अलग अलग उदघाटन पटट लगे हैं लेकिन राजनीती इन पटिटकाओं के बाद बाउन्ड्रीवाल भी नहीं खीच पाई है।
तहलका के रिर्पाेटर निराला की रिर्पोट एक उल्लेखनीय तथ्य भी सामने लाती है कि, जहाॅ जहाॅ इन समुदायों की बसाहट है वहाॅ वहाॅ नक्सली इनसे प्रभावित हुये है ओर अपनी गतिविधियों को छोडकर इनके साथ आ गये है।
का’ा राजनीति को दर किनार कर इस समुदाय के विकास के प्रति सरकार संवेदना से काम करे तो यह गाँधी के विचार वाहक आदिवासी एक नये जीवन की ‘ाुरुआत कर सके।
Uma Shankar Mehta
Latest posts by Uma Shankar Mehta (see all)
- मानवाधिकार एक बार फिर, सलाखों के पीछे - November 14, 2014
- वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली गुरु- विवेकानंद - September 18, 2013
- सूरज नये साल का - September 18, 2013