भारतीय हाॅकी टीम ने 1980 में मास्को में हुये ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था । उसके बाद हुये छः ओलम्पिक जिनमें कि भारतीय टीम ने भाग लिया, एक भी पदक नहीं जीत सकी। हाॅकी भारत का रा”ट्रीय खेल है, या यूॅ क
हलें कि, हाॅकी में हार जीत हमारे रा”ट्रीय सम्मान से जुड जाती है। धनराज पिल्लै, जफर इकबाल, ‘ााहिद, जगबीर, अ’ाोक कुमार,परगटसिंह, मुके’ाकुमार, आदि वि’व के श्रे”ठ खिलाडी होने के बाबजूद एसा क्या हैे कि, भारतीय हाॅकी टीम अपना सम्मान नहीं लौटा पाई।
मुझे याद है वो क्षण जब माॅटियल ओलम्पिक में पहिली बार भारतीय टीम बिना पदक के खाली हाथ लौटी थी तो दादा ध्यान चंद ने कहा था कि, क्या मुझे मेरे जीवन में ये समय भी देखना था? उनके पुत्र अ’ाोक कुमार जो उस टीम के सदस्य थे उनसे दादा ध्यान चंद कई दिनों तक नहीं बोले। जब अ’ाोक कुमार ने अपनी सफाई देनी चाही तो दादा ने उनसे केवल इतना ही कहा कि, ‘‘बडे खिलाडी एसी गलतियाॅ नहीं करते’’ ये वो दौेर था जब हाॅकी को न केवल खेल बल्कि रा”ट्रीय सम्मान का प्रतीक माना जाता था। लेकिन हाॅकी संधों के पदाधिकारियों के ेआपसी झगडों ने हाॅकी को रसातल में लाने में कोई कसर नहीं छोडी जो आज भी अनवरत जारी हेै। आज भी इंडियन हाॅकी फेडरे’ान और हाॅकी इंडिया के नाम से दो संस्थाएं काम कर रहीं है। हाॅकी इंडिया को अन्र्तरा”ट्रीयं हाॅकी संघ की मान्यता है तो भारतीय हाॅकी संघ को न्यायालय में प्रकरण विचाराधीन होने के कारण सरकार की। सरकार , ओलम्पिक संघ औेर हाॅकी के ‘ाुभचिंतकों के इन्हें एक करने के कई बार किये गये प्रयास असफल रहे है। बहरहाल इन सब परिस्थियों के बाबजूद भारतीय टीम लंदन जाने को पूरी तरह तैयार है।
विगत दिनों हाॅकी के स्तर में सुधार के लिये किये प्रयत्न अब स्पस्ट दिखने लगे है। पहिली बार भारतीय टीम को एक मेहनती और उत्साही विदे’ाी कोच दिया गया है। जिसके प्रयास अब रंग दिखाने लगे है। भारतीय हाॅकी के इतिहास में 1908 में भारतीय टीम अपने लचर प्रदर्’ान के कारण ओलम्पिक खेलों के लिये पात्रता हासिल नहीं कर सकी थी वो भारतीय हाॅकी का सबसे बुरा दौर था। लेकिन इस बार भारतीय टीम ने पात्रता प्रतियोगिता में ‘ाानदार प्रदर्’ान करते हुये पात्रता हासिल की। इसके बाद लग रहा है कि, भारतीय टीम अपने अच्छे दिनों की ओर अग्रसर है। हाल ही में मलये’िाया में सम्पन्न सुल्तान अजलन ‘ााह अनर्तरा”ट्रीय हाॅकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम ने काॅस्य जीत कर अपनी क्षमता, उत्साह और जजबे का अहसास करा दिया है। अभी हाल ही में फ्राॅस के साथ हुई दो टेस्ट मैंचों की श्रंखला भी भारतीय टीम 2-0 से जीत गई्र है तथा स्पेन के साथ पहिला टेस्ट 3-3 से बराबरी पर खेल कर अपनी पदक की संभावनाओं को बरकरार रखा है।
जहाॅ तक भारतीय टीम के खिलाडियों के अनुभव का प्र’न है , केवल ईग्नेस टर्की (246 मैच)औेर संदीप सिंह(161 मैच) ही ऐस दो खिलाडी है जो पिछला ओलम्पिक (2004) खेल चुके है। 2008 में भारतीय टीम पात्रता नहीं होने से भाग नहीं ले सकी थी। यूॅ अन्र्तरा”ट्रीय मैचों का अनुभव जिन खिलाडियों में है। इनमें प्रमुख हैः- तु”ाार खांडेकर (219 मैच) उप कप्तान सरदारा सिंह 129,कप्तान भरत छेत्री126, सरवन सिंह 116, ’िावेन्द्र 143, रघुनाथ103,सुनील 86, तथा चाॅडी 75 अन्र्तरा”ट्रीय मैच। ‘ो”ा खिलाडी अभी उतने अनभवी नहीं है हाॅलाकि, इन खिलाडियों ने पिछले दिनों हुई सुल्तान अजलन ‘ााह अन्र्तरा”ट्रीय प्रतियोगिता नीले टर्फ ओैर पीली गेंद से खेली है तथा चार दे’ाों को टूर्नामेंन्ट, फ्राॅस तथा स्पेन दोैरे का अनुभव लिया है फिर भी टीम का दारोमदार अपेक्षाकृत अनुभवी खिलाडियों पर ही होगा।
भरतीय टीम के प्र’िाक्षक की मुख्य योजना यह होगी कि, फारवर्ड विपक्षी गोलपोस्ट पर अधिक से अधिक हमले कर रक्षापंक्ति को गलती करने को मजबूर करें ताकि, उन्हें अधिक से अधिक पेनेल्टी कार्नर हासिल हों। जैसा कि, हम सभी जानते हैे कि, पेनेल्टी कार्नर को गोल में परिवर्तित करने की विधा में हम अच्छा कर रहे है।
हम आ’ाा करते है कि, यह अपेक्षाकृत युवा और जो’ा से भरी हुई यह टीम विगत 32 सालों से तरसती भारतीय हाॅकी की झोली में कोई पदक जरुर डालेगी। टीम के सभी खिलाडियों को भारतीय हाॅकी के प्रसं’ाकों की ओर से हार्दिक ‘ाुभकामनाये।
Uma Shankar Mehta
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